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जहाँ ताली वहाँ गाली

वाह कैसी रे दुनिया,
जहाँ ताली वहाँ  गाली  || 

राहो पे राह नहीं ,
साँसों में सांस नहीं ,
पेड़े पे पत्तियां नहीं ,
नदियों में पानी नहीं ,

वाह कैसी रे दुनिया ,
जहाँ ताली वहाँ  गाली  || 
|

चहक ने को चिड़िया नहीं ,
नाचने को मोर नहीं ,
गाने को कोयल नहीं ,
उड़ने को आकाश नहीं ,

वाह कैसी रे दुनिया,
जहाँ ताली वहाँ  गाली  || 

धार्मिक में धर्म नहीं ,
पंडित में ज्ञान नहीं ,
साधु ने साधा नहीं ,
सच्च  को  जाना नहीं ,

वाह कैसी रे दुनिया ,
जहाँ ताली वहाँ  गाली  || 

कपड़ो में गाँधी नहीं ,
कहानियों में राम नहीं ,
गानो में कबीर नहीं ,
खानों में शबरी नहीं ,

वाह कैसी रे दुनिया ,
जहाँ ताली वहाँ  गाली  || 

बच्चों का बच्पन नहीं ,
जवानी को समय नहीं ,
बूढ़ो को घर नहीं ,
मरने को घाट नहीं ,

वाह कैसी रे दुनिया ,
जहाँ ताली वहाँ  गाली  || 

नेताओं से उम्मीद नहीं ,
दवाईओं के पैसे नहीं ,
सच्चे लेख नहीं ,
गुरु की कोई सुनता नहीं ,

वाह कैसी रे दुनिया ,
जहाँ ताली वहाँ  गाली  || 

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हे राम !

 हे राम ! ना तुम बचें , ना सीता बची , ना लक्ष्मण , और ना हनुमान , ना लंका बची ना लंकेश , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना  प्रेम बचा , ना बचें झूठन बेर , ना अनुराग बचा , ना बचा वैराग , ना कोई त्याग , ना कोई साधना , ना कोई हठ , ना कोई पीड़ा , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना धर्म बचा , ना कोई वेद  , ना कोई भक्ति , ना कोई मुक्ति , ना साधू , ना संत , ना ज्ञानी , ना ज्ञान , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना शान्ति , ना आंनद , ना धैर्य बचा और ना कोई तपस्या , हे राम ! अब तेरे नाम पे कोई कर्म भी नहीं बचा , ना सत्य बचा और ना ही कोई खोज , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  जब कुछ नहीं बचा , हे राम ! अब तेरे नाम की यह दिवाली भी ना बचें || 

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं |

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं | बंदरों के बीच कूदते फांदते , गगन को छु जाना हैं |  मिट्टी का पुतला ले बैठें , उसे ऐसे तपाना हैं , माया के हर वार से , उसे कैसे बचाना हैं |  ऊचें ऊचें वृक्षों कि छाया , तमसा के समान हैं , तलाश हैं एक अखंड देव की , जिससे उसे जलाना हैं |  कुरुक्षेत्र कि युद्ध हम लड़ते , दुर्योधन को हराना हैं , जंगल में पैदा हुए हैं , बस एक सारथी का सहारा हैं | 
गुरु कौन हैं ? गुरु  उड़ान हैं,  मन की...... .       तृष्णा से कृष्णा की ओर       शंका से शंकर की ओर       काम से राम की ओर       भोग से योग की ओर       जड़ से चेतन की ओर       क्रोध से बोध की ओर       बेचैनी से चैन की ओर       शक्ति से शिव की ओर       समस्या से समाधान की ओर       झूट से सत्य की ओर       माया से आत्मा की ओर ||