Skip to main content

हे राम !

 हे राम !

ना तुम बचें , ना सीता बची ,

ना लक्ष्मण , और ना हनुमान ,

ना लंका बची ना लंकेश ,

बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची | 


हे राम !

ना  प्रेम बचा , ना बचें झूठन बेर ,

ना अनुराग बचा , ना बचा वैराग ,

ना कोई त्याग , ना कोई साधना ,

ना कोई हठ , ना कोई पीड़ा ,

बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची | 


हे राम !

ना धर्म बचा , ना कोई वेद  ,

ना कोई भक्ति , ना कोई मुक्ति ,

ना साधू , ना संत ,

ना ज्ञानी , ना ज्ञान ,

बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची | 


हे राम !

ना शान्ति , ना आंनद ,

ना धैर्य बचा और ना कोई तपस्या ,

हे राम !

अब तेरे नाम पे कोई कर्म भी नहीं बचा ,

ना सत्य बचा और ना ही कोई खोज ,

बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची | 


जब कुछ नहीं बचा ,

हे राम !

अब तेरे नाम की यह दिवाली भी ना बचें || 


Comments

Popular posts from this blog

Chapter 10: The Human Goal: Moksha - Story of Kotikarna

Bhikshu Kotikarna mentioned that Moksha is to understand your true nature. (अपने असली स्वरूप को पहचानना ही मोक्ष है।). However, for a majority of us the question would remain as beautifully asked by the student in Vivekachoodamani: भ्रमेणाप्यन्यथा वाऽस्तु जीवभावः परात्मनः तदुपाधेरनादित्वान्नानादेनार्श इष्यते॥ अतोस्य जीवभावोऽपि नित्या भवति संसृतिः न निवर्तेत तन्मोक्षः कथं मे श्रीगुरो वद॥ [- १९२ & १९३] bhrameṇāpyanyathā vā'stu jīvabhāvaḥ parātmanaḥ tadupādheranāditvānnānādenārśa iṣyate. atosya jīvabhāvo'pi nityā bhavati saṁsṛtiḥ na nivarteta tanmokṣaḥ kathaṁ me śrīguro vada. [192 & 193] That the Supreme Self has come to consider itself as the jiva, through delusion or otherwise, is a superimposition which is beginning less. That which is beginning less cannot be said to have an end ! So the jiva-hood of the Self must also be without an end, ever subject to transmigration. Please tell me, O revered Teacher, how then can there be 'moksha' (liberation) for the Self? ...

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं |

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं | बंदरों के बीच कूदते फांदते , गगन को छु जाना हैं |  मिट्टी का पुतला ले बैठें , उसे ऐसे तपाना हैं , माया के हर वार से , उसे कैसे बचाना हैं |  ऊचें ऊचें वृक्षों कि छाया , तमसा के समान हैं , तलाश हैं एक अखंड देव की , जिससे उसे जलाना हैं |  कुरुक्षेत्र कि युद्ध हम लड़ते , दुर्योधन को हराना हैं , जंगल में पैदा हुए हैं , बस एक सारथी का सहारा हैं |