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Chapter 12: गृहस्थ जीवन (Married Life)

The second of the four ashramas or stages of life is  the household life or the Grihastha ashrama. Grihastha ashrama forms the  foundation of society. To care for the family, to extend the ambit of one’s  family beyond the walls of one’s home, to serve the society, to care for  others – all these form the very challenge as well as the beauty of this  stage of life.

 

For this, the interesting story of the famous poet  Maagha and his wife Vidyavati has been chosen. The great poet Maagha used to  give away in charity everything he received as gifts. Once, a brahmin  approached him for help to conduct his daughter's wedding. Maagha sold items  from his home and sent the money to the father. All arrangements were made,  but for golden ornaments; so the compassionate Maagha took the golden bangle  off his sleeping wife Vidyavati's wrist and sent it to the brahmin. In the  morning, when Vidyavati awoke, she took off the second bangle, and giving it  to Maagha, said, "We should not bid farewell to our daughter with a  single bangle."

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हे राम !

 हे राम ! ना तुम बचें , ना सीता बची , ना लक्ष्मण , और ना हनुमान , ना लंका बची ना लंकेश , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना  प्रेम बचा , ना बचें झूठन बेर , ना अनुराग बचा , ना बचा वैराग , ना कोई त्याग , ना कोई साधना , ना कोई हठ , ना कोई पीड़ा , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना धर्म बचा , ना कोई वेद  , ना कोई भक्ति , ना कोई मुक्ति , ना साधू , ना संत , ना ज्ञानी , ना ज्ञान , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना शान्ति , ना आंनद , ना धैर्य बचा और ना कोई तपस्या , हे राम ! अब तेरे नाम पे कोई कर्म भी नहीं बचा , ना सत्य बचा और ना ही कोई खोज , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  जब कुछ नहीं बचा , हे राम ! अब तेरे नाम की यह दिवाली भी ना बचें || 

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं |

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं | बंदरों के बीच कूदते फांदते , गगन को छु जाना हैं |  मिट्टी का पुतला ले बैठें , उसे ऐसे तपाना हैं , माया के हर वार से , उसे कैसे बचाना हैं |  ऊचें ऊचें वृक्षों कि छाया , तमसा के समान हैं , तलाश हैं एक अखंड देव की , जिससे उसे जलाना हैं |  कुरुक्षेत्र कि युद्ध हम लड़ते , दुर्योधन को हराना हैं , जंगल में पैदा हुए हैं , बस एक सारथी का सहारा हैं | 
गुरु कौन हैं ? गुरु  उड़ान हैं,  मन की...... .       तृष्णा से कृष्णा की ओर       शंका से शंकर की ओर       काम से राम की ओर       भोग से योग की ओर       जड़ से चेतन की ओर       क्रोध से बोध की ओर       बेचैनी से चैन की ओर       शक्ति से शिव की ओर       समस्या से समाधान की ओर       झूट से सत्य की ओर       माया से आत्मा की ओर ||