
तुलसीदास का जन्म राजापुर गाँव उत्तर प्रदेश में हुआ था. जन्म लेने के बाद प्राय: सभी शिशु रोया ही करते हैं, किन्तु इस तुलसीदास ने जो पहला शब्द बोला वह राम था. अतएव उनका घर का नाम ही रामबोला पड़ गया. माँ तो जन्म देने के बाद दूसरे ही दिन चल बसी बाप ने किसी और अनिष्ट से बचने के लिये बालक को चुनियाँ नाम की एक दासी को सौंप दिया और स्वयं विरक्त हो गये. जब रामबोला साढे पाँच वर्ष का हुआ तो चुनियाँ भी नहीं रही. वह गली-गली भटकता हुआ अनाथों की तरह जीवन जीने को विवश हो गया.
रामशैल पर रहनेवाले नरहरि बाबा ने इस रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूँढा और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा. तदुपरान्त वे उसे अयोध्या (उत्तर प्रदेश) ले गये. वहाँ राम-मन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्याध्ययन कराया. बालक रामबोला की बुद्धि बड़ी प्रखर थी. वह एक ही बार में गुरु-मुख से जो सुन लेता, उसे वह कंठस्थ हो जाता.
ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, गुरुवार, संवत् 1583 को 29 वर्ष की आयु में राजापुर से थोड़ी ही दूर यमुना के उस पार स्थित एक गाँव की अति सुन्दरी भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ. तुलसीदास जी व रत्नावली दोनों का बहुत सुन्दर जोड़ा था. दोनों विद्वान थे. दोनों का सरल जीवन चल रहा था.
परन्तु विवाह के कुछ समय बाद रत्नावली अपने भाई के साथ मायके चलीं गई तब उनका वियोग तुलसी लिये असहनीय हो गया था. एक दिन रात को वे अपने को रोक नहीं पाये. आव देखा न ताव घनघोर अंधेरी रात में व धुंआधार चलती बरसात में ही एक लाश को लकड़ी का लट्ठा समझ कर उफनती यमुना नदी तैरकर पार कर गये. और रत्नावली के गांव पहुंच गये. वहां रत्नावली के मायके के घर के पास पेड़ पर लटके सांप को रस्सी समझ कर ऊपर चढ़ गये और उसके कमरे में पहुंच गये. इस पर रत्नावली ने उन्हें बहुत धिक्कारा और भाव भरे मार्मिक लहजे में स्वरचित दोहा सुनाया :
“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?”
अर्थात ”मेरे इस हाड – मांस के शरीर के प्रति जितनी तुम्हारी आसक्ति है, उसकी आधी भी अगर प्रभु से होती तो तुम्हारा जीवन संवर गया होता.” सुनकर तुलसी सन्न रह गये. उनके हृदय में यह बात गहरे तक उतर गयी. और उनके ज्ञान चक्षु खुल गये. उनको अपनी मूर्खता का एहसास हो गया. वे एक क्षण भी रुके बिना वहां से चल दिये. और उनका ह्रदय परिवर्तन हो गया. इन्ही शब्दों की शक्ति ने तुलसीराम को महान गोस्वामी तुलसीदास बना दिया.
तुलसीदास के नये अवतार ने रामचरित मानस जैसे महाकाव्य की रचना की. भारत ही नहीं सारी दुनिया उनकी रचनाओं का लोहा मानती है.
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