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उम्मीद

यह दुनिया झूठ की पाठशाला हैं | 
यहाँ उम्मीदें की किताबें नहीं पढ़ाई जाती || 

यहाँ सपनो के पुल बाधें जातें हैं | 
लेकिन साहस की ईटें नहीं दिया जाता || 

यहाँ दोस्ती की डोर बाँधी जाती हैं | 
लेकिन उसे प्रेम के रंग में नहीं बुना जाता || 

यहाँ रिश्तों में बढ़ा मिठास हैं | 
लेकिन उसे विश्वास में नहीं बनाया हैं || 

यहाँ लोग अजीब तारों से जुड़े हैं | 
लेकिन इन तारों को सुरों से नहीं जोड़ा जाता || 

यहाँ तो सभी अपने दिखाई पड़ते हैं | 
लेकिन उन अपनों ने हमें पराया मान रखा हैं || 

यह दुनियाँ अहम् की दुकान हैं | 
यहाँ तुम्हें कोई उम्मीद नहीं हैं || 

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Chapter 10: The Human Goal: Moksha - Story of Kotikarna

Bhikshu Kotikarna mentioned that Moksha is to understand your true nature. (अपने असली स्वरूप को पहचानना ही मोक्ष है।). However, for a majority of us the question would remain as beautifully asked by the student in Vivekachoodamani: भ्रमेणाप्यन्यथा वाऽस्तु जीवभावः परात्मनः तदुपाधेरनादित्वान्नानादेनार्श इष्यते॥ अतोस्य जीवभावोऽपि नित्या भवति संसृतिः न निवर्तेत तन्मोक्षः कथं मे श्रीगुरो वद॥ [- १९२ & १९३] bhrameṇāpyanyathā vā'stu jīvabhāvaḥ parātmanaḥ tadupādheranāditvānnānādenārśa iṣyate. atosya jīvabhāvo'pi nityā bhavati saṁsṛtiḥ na nivarteta tanmokṣaḥ kathaṁ me śrīguro vada. [192 & 193] That the Supreme Self has come to consider itself as the jiva, through delusion or otherwise, is a superimposition which is beginning less. That which is beginning less cannot be said to have an end ! So the jiva-hood of the Self must also be without an end, ever subject to transmigration. Please tell me, O revered Teacher, how then can there be 'moksha' (liberation) for the Self? ...

हे राम !

 हे राम ! ना तुम बचें , ना सीता बची , ना लक्ष्मण , और ना हनुमान , ना लंका बची ना लंकेश , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना  प्रेम बचा , ना बचें झूठन बेर , ना अनुराग बचा , ना बचा वैराग , ना कोई त्याग , ना कोई साधना , ना कोई हठ , ना कोई पीड़ा , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना धर्म बचा , ना कोई वेद  , ना कोई भक्ति , ना कोई मुक्ति , ना साधू , ना संत , ना ज्ञानी , ना ज्ञान , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना शान्ति , ना आंनद , ना धैर्य बचा और ना कोई तपस्या , हे राम ! अब तेरे नाम पे कोई कर्म भी नहीं बचा , ना सत्य बचा और ना ही कोई खोज , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  जब कुछ नहीं बचा , हे राम ! अब तेरे नाम की यह दिवाली भी ना बचें ||