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हे राम !

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नमस्ते, आप कैसे हैं? रुकिए ! जरा आराम से, सोच के जवाब दो।  कोई जल्दी नहीं हैं। जरा अपने आप को देखो और अपने आस पास देखो, सब सही चल रहा हैं।  अगर सब ठीक हैं तो कृपया अपना समय बर्बाद मत करो, यह लेख आप के लिए नहीं हैं। जो कर रहें हैं उसे जारी रखें।  अगर कुछ गड़बड़ लग रहा हैं, तो चलो आगे बढ़ते हैं। एक कहानी सुनते हैं।  "पैदा हुए ___ पढ़ाई किया  ___ नौकरी किया  ____ शादी किया  ____ घोंसला बनाया ___ बच्चे हुए ___ बढ़ें हुए ___ मर गए " THE -- HOLY -- EIGHT -- STEP -- PROCESS -- TO -- DEATH कहानी  कैसी  लगी।   कुछ याद आया, यह हमारी कहानी हैं। यह हम सब की कहानी हैं | यह कहानी हमारे पैदा होने से पहले ही लिख दिया गया था। अगर यह कहानी आपको सही लगती हैं, तो कृपया अपना कीमती समय यहाँ बर्बाद मत करे।  यह कहानी बड़ी पुरानी हैं, पता हैं क्यों ?  क्यूँकि यह कहानी जंगल की हैं। एक जानवर का भी यहीं कहानी हैं। वो भी पैदा होता हैं , नर और मादा मिलते हैं ,घोंसला बनाया जाता हैं , बच्चें होतें हैं , बूढें होतें हैं और मर जातें हैं। नहीं , नहीं , आप कहेंगें हम पढाई और नौकरी भी करते हैं। आप की बात सही हैं , लेक

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं |

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं | बंदरों के बीच कूदते फांदते , गगन को छु जाना हैं |  मिट्टी का पुतला ले बैठें , उसे ऐसे तपाना हैं , माया के हर वार से , उसे कैसे बचाना हैं |  ऊचें ऊचें वृक्षों कि छाया , तमसा के समान हैं , तलाश हैं एक अखंड देव की , जिससे उसे जलाना हैं |  कुरुक्षेत्र कि युद्ध हम लड़ते , दुर्योधन को हराना हैं , जंगल में पैदा हुए हैं , बस एक सारथी का सहारा हैं | 

Chapter 4 The Yoga of Wisdom (Part 2)

  The secret of right action (Chapter 4, Verse 25-33)  श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप। सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।।4.33।। śhreyān dravya-mayād yajñāj jñāna-yajñaḥ parantapa sarvaṁ karmākhilaṁ pārtha jñāne parisamāpyate Knowledge-sacrifice, O scorcher of foes, is superior to sacrifice (performed) with (material) objects. All action in its entirety, O Partha, attains its consummation in knowledge. ~ Chapter 4, Verse 33 ✥ ✥ ✥ Questioner (Q):  From verse 25 to 33 of chapter 4, Shri Krishna speaks of the following sacrifices to gods: sacrifice of self, which is the ego, Aham; sacrifice of organs of senses; sacrifice of objects of senses; sacrifice of functions of senses; sacrifice of wealth; sacrifice by austerities; sacrifice by study of scriptures; sacrifice by restraint of breath, and sacrifice of diet. What is really meant by ‘sacrifice’ or ‘yagya’, and what is really meant by ‘jnana yagya’ that Krishna says is greater than all the other sacrifices or yagya? P