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Pursuit of Happiness

आज इंसान पूरे दुनियाँ में सुःख की खोज कर रहा हैं | हर किसी का तरीका अलग अलग हो सकता हैं लेकिन आख़िर कार खोज उसकी सुःख कि ही हैं | इस खोज को बढ़े ध्यान से देखें तो दिखेगा की इंसान सूख की ख़ोज इसलिए कर रहा हैं क्यों की वो बड़ा दुःखी हैं और उसमें यह हिम्मत नहीं हैं की वो इसको किसीको कह सके | तो वो अलग अलग तरीकों से फ़िर सुःख की खोज करता हैं | कोई पैसों में , कोई दोस्तों में , कोई बड़े  घरों में , कोई फिल्मों में ,कोई खाने में ,कोई सोने में,कोई खेल में ,कोई नाच गानों में , कोई शराब पिके के  अपना सुःख खोजतें  हैं | इसको देखें तो हम पाएंगे की हम सुःख नहीं खोज रहे लेकिन हम अपने आपको बेहोश कर रहे हैं | हमें सुःख नहीं बेहोशी चाहिए | क्यों की हम बेहोश हैं हम यह नहीं देख रहे जो हमें सुख दे रहा हैं उससे  हमें उसकी आदत  भी हो रही हैं और यही आदत कल हमें दुःख देगी | 


तो अब करें तो क्या करे | करना कुछ नहीं हैं बस हमें देखना हैं की हमें दुःख दे कौन रहा हैं | जीवन मैं ऐसा कोनसा कारण हैं याह बंधन हैं जो मुझे दुःख दे रहा उसे खोजें और उससे मुक्त हो जाओ | यही सही तरीका हैं | इससे ही सच्ची सुख़ की प्राप्ति होगी | 


"Don't search happiness, just find the source of misery"

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हे राम !

 हे राम ! ना तुम बचें , ना सीता बची , ना लक्ष्मण , और ना हनुमान , ना लंका बची ना लंकेश , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना  प्रेम बचा , ना बचें झूठन बेर , ना अनुराग बचा , ना बचा वैराग , ना कोई त्याग , ना कोई साधना , ना कोई हठ , ना कोई पीड़ा , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना धर्म बचा , ना कोई वेद  , ना कोई भक्ति , ना कोई मुक्ति , ना साधू , ना संत , ना ज्ञानी , ना ज्ञान , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना शान्ति , ना आंनद , ना धैर्य बचा और ना कोई तपस्या , हे राम ! अब तेरे नाम पे कोई कर्म भी नहीं बचा , ना सत्य बचा और ना ही कोई खोज , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  जब कुछ नहीं बचा , हे राम ! अब तेरे नाम की यह दिवाली भी ना बचें || 

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं |

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं | बंदरों के बीच कूदते फांदते , गगन को छु जाना हैं |  मिट्टी का पुतला ले बैठें , उसे ऐसे तपाना हैं , माया के हर वार से , उसे कैसे बचाना हैं |  ऊचें ऊचें वृक्षों कि छाया , तमसा के समान हैं , तलाश हैं एक अखंड देव की , जिससे उसे जलाना हैं |  कुरुक्षेत्र कि युद्ध हम लड़ते , दुर्योधन को हराना हैं , जंगल में पैदा हुए हैं , बस एक सारथी का सहारा हैं | 
गुरु कौन हैं ? गुरु  उड़ान हैं,  मन की...... .       तृष्णा से कृष्णा की ओर       शंका से शंकर की ओर       काम से राम की ओर       भोग से योग की ओर       जड़ से चेतन की ओर       क्रोध से बोध की ओर       बेचैनी से चैन की ओर       शक्ति से शिव की ओर       समस्या से समाधान की ओर       झूट से सत्य की ओर       माया से आत्मा की ओर ||