Skip to main content

Chapter 13: वानप्रस्थ जीवन

1- आधुनिक मनुष्य जीवन का शिल्प जानता है, विज्ञान जानता है, परंतु प्राचीन मनुष्य जीवन की कला जानता था।


2- गृहस्थ आश्रम की स्मृतियों को याद कर सन्यास के लिए अपने आपको तैयार करना ही वानप्रस्थ जीवन है।


3- निर्णय व अनिर्णय के भँवर में जो फँसता है, वह अनिश्चित भविष्य के प्रति भयभीत रहता है।


4- वानप्रस्थ बुढ़ापे का दंड नहीं, बल्कि बुढ़ापे की लाठी होता है।


5- जो लोग संसार छोड़ नहीं सकते वह वन में जाकर भी संसार बसा लेते हैं, व जो लोग संसार छोड़ चुके होते हैं, वह घर मैं रह कर भी वन में रह रहे होते हैं।


6- समय के साथ आश्रमों का रूप बदलता है भाव नहीं। भाव अनासक्ति से है, छोड़ने से है, त्याग से है।


7- जो समय रहकर नहीं छोड़ते वे कष्ट, संघर्ष, द्वंद, अवसाद व दुख को आमंत्रण देते हैं।


8- जो अपना होता है उसको छोड़ना ही सबसे मुश्किल कार्य होता है। सत्ता, रिश्तों के प्रति मोह ही भविष्य में पीड़ादायक होता है।


9- 'यह संसार भी उसका कुटुंब है', यह सोचने का अवसर भी उसे वानप्रस्थ ही देता है।


10- स्वयं का उत्कर्ष व संसार का कल्याण ही वानप्रस्थ का उद्देश्य है।

Comments

Popular posts from this blog

हे राम !

 हे राम ! ना तुम बचें , ना सीता बची , ना लक्ष्मण , और ना हनुमान , ना लंका बची ना लंकेश , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना  प्रेम बचा , ना बचें झूठन बेर , ना अनुराग बचा , ना बचा वैराग , ना कोई त्याग , ना कोई साधना , ना कोई हठ , ना कोई पीड़ा , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना धर्म बचा , ना कोई वेद  , ना कोई भक्ति , ना कोई मुक्ति , ना साधू , ना संत , ना ज्ञानी , ना ज्ञान , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  हे राम ! ना शान्ति , ना आंनद , ना धैर्य बचा और ना कोई तपस्या , हे राम ! अब तेरे नाम पे कोई कर्म भी नहीं बचा , ना सत्य बचा और ना ही कोई खोज , बस तेरे नाम पे आज सिर्फ़ दिवाली बची |  जब कुछ नहीं बचा , हे राम ! अब तेरे नाम की यह दिवाली भी ना बचें || 

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं |

जंगल में पैदा हुए हैं , जंगल के पार जाना हैं | बंदरों के बीच कूदते फांदते , गगन को छु जाना हैं |  मिट्टी का पुतला ले बैठें , उसे ऐसे तपाना हैं , माया के हर वार से , उसे कैसे बचाना हैं |  ऊचें ऊचें वृक्षों कि छाया , तमसा के समान हैं , तलाश हैं एक अखंड देव की , जिससे उसे जलाना हैं |  कुरुक्षेत्र कि युद्ध हम लड़ते , दुर्योधन को हराना हैं , जंगल में पैदा हुए हैं , बस एक सारथी का सहारा हैं | 
गुरु कौन हैं ? गुरु  उड़ान हैं,  मन की...... .       तृष्णा से कृष्णा की ओर       शंका से शंकर की ओर       काम से राम की ओर       भोग से योग की ओर       जड़ से चेतन की ओर       क्रोध से बोध की ओर       बेचैनी से चैन की ओर       शक्ति से शिव की ओर       समस्या से समाधान की ओर       झूट से सत्य की ओर       माया से आत्मा की ओर ||