1- आधुनिक मनुष्य जीवन का शिल्प जानता है, विज्ञान जानता है, परंतु प्राचीन मनुष्य जीवन की कला जानता था।
2- गृहस्थ आश्रम की स्मृतियों को याद कर सन्यास के लिए अपने आपको तैयार करना ही वानप्रस्थ जीवन है।
3- निर्णय व अनिर्णय के भँवर में जो फँसता है, वह अनिश्चित भविष्य के प्रति भयभीत रहता है।
4- वानप्रस्थ बुढ़ापे का दंड नहीं, बल्कि बुढ़ापे की लाठी होता है।
5- जो लोग संसार छोड़ नहीं सकते वह वन में जाकर भी संसार बसा लेते हैं, व जो लोग संसार छोड़ चुके होते हैं, वह घर मैं रह कर भी वन में रह रहे होते हैं।
6- समय के साथ आश्रमों का रूप बदलता है भाव नहीं। भाव अनासक्ति से है, छोड़ने से है, त्याग से है।
7- जो समय रहकर नहीं छोड़ते वे कष्ट, संघर्ष, द्वंद, अवसाद व दुख को आमंत्रण देते हैं।
8- जो अपना होता है उसको छोड़ना ही सबसे मुश्किल कार्य होता है। सत्ता, रिश्तों के प्रति मोह ही भविष्य में पीड़ादायक होता है।
9- 'यह संसार भी उसका कुटुंब है', यह सोचने का अवसर भी उसे वानप्रस्थ ही देता है।
10- स्वयं का उत्कर्ष व संसार का कल्याण ही वानप्रस्थ का उद्देश्य है।
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